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अजितशान्ति स्तवनम् ॥
(छाया) . यः अजितशान्तिस्तवं उभयकालं पठति निशृणोतिच तस्य हु ( निश्चितं ) रोगाः न भवन्ति पूर्वोत्पन्ना अपि ( रोगाः) नश्यन्ति ।
(पदार्थ) । (जो) जो मनुष्य ( अजिअसतिसंथयं ) अजित नाथ और शान्तिनाथ स्वामीक स्तवनको (उभओकालं) प्रातःकाल और सायंकाल ( पढइ ) पठनकरताहै (अ) और (निसुणइ ) श्रवणकरता है ( तस्स ) उसे (रोगा ) शारीरिक पीडा (हु) निश्चयसे (न ) नहीं (हुति ) होतीहै ( पुव्वुपन्ना ) पहिले पैदाहुए रोग (पि ) भी ( विनासंति ) नष्ट होतेहैं ।
.. (भावार्थ ) जो मनुष्य अजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामीके स्तवनको प्रातःकाल और सायंकाल पठनकरताहै और श्रवणकरताहै उसे शारीरिक पीडा निश्चयसे नहीं होती और इस स्तवनके पठनारंभके पहिले पैदाहुए रोगभी शान्त होजातेहैं।