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भजितशान्ति स्तवनम् ॥
सर्वैः श्रोतव्यः एषः अजिशान्तिस्तवः उपसर्गनिवारणः अस्ति ।
(पदार्थ) (पक्खिअ ) पूर्णिमाको ( चाउम्मासिअ ) चातुर्मास मैं ( संवच्छरिए ) संवत्सरके प्रतिक्रमणके दिन (अवस्स) अवश्य (भणिअव्वो) पठन करनाचाहिये और (सन्वेहि) सबोंने ( सोयो ) श्रवणकरना चाहिये ( एसो) यह स्तवन ( उक्सग्ग) विश्नोंका (निवारण) नाशकरने वाला है।
(भावार्थ) इस सम्पूर्ण विघ्नोंको नाशकरनेवाले अजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामीक स्तवनको पनमकेदिन चोमासेमें
और संवत्सरके प्रतिक्रमणके दिन अवश्य सब श्रावकोंने पठनकरना चाहिये और श्रवणकरना चाहिये ।
(गाथाछंदः)
॥ गाहा ॥ जो पदइजोअनिसुणइ उभओकालंपि अजिअ. संतिसंथयं । नहु हुंति तस्स रोगा पुवुपन्ना विनासंति ॥ ३९ ॥