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________________ ५६ अजितशान्ति स्तवनम् ॥ (भावार्थ), तपोबलसे विशाल नष्ट होगया है ज्ञानावरणादि आठ बध्यमान काँका मल जिन्होंका आद्यन्तरहित निर्मल मोक्षास्व्य गतिको पहुंचेहुए ऐसे दोनों अजितनाथ और शान्तिनाथस्वामी की इस प्रकार मैने स्तुति की। - (गाथाछंदः) ॥ गाहा ॥ तं बहुगुणप्पसायं मुक्खसुहेण परमेण अविसायं । नासेउमेविसायं कुणउअपरिसाविअपसायं ॥३६ ।। (छाया) . बहुगुणप्रसादं परमेण मोक्षसुखेन अविषादं एतादृशं तत् जिनयुगलं मे विषादं नाशयतु च परिषदपि प्रसाद करोतु । बहुगुणानां प्रसादो नैर्मल्यं यस्य अथवा बहुगुण प्रसादोऽनुग्रहो यस्य तत् (१) मदुक्तेर्गुणस्वीकरणदूषणाबधीरणलक्षण मनुग्रहं मयि करोतु । ( पदार्थ) (बहुगुण) ज्ञानादि अनेक गुणोंका (प्पसायं)
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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