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________________ अजितशान्ति स्तवनम् ॥ . (गाथा छंदः) ॥गाहा ॥ एवं तवबलविउलं थुअंमए अजिअसंति जिण जुयलं ववगयकम्मरयमलं गई गयं सासयां विमलां ॥ ३५॥ (छाया) तपोबल विपुलं व्यपगतकर्मरजोमलं शाश्वती विमलां गतिं गतं ( एतादृशं ) अजितशान्तिजिनयुगलं मया एवं स्तुतम् । . (पदार्थ ) ( तवबल ) तपोबलसे ( विउलं ) विशाल (ववगय) नष्टहोगयाहै ( कम्म ) ज्ञानावरणादि आठ कर्म और (स्यमलं ) बध्यमान कर्मोंकामल जिन्होंका (सासयां) आद्यन्तरहित ( विमलां ) कर्ममलसे रहित (गई ) 'मोक्षरूप गतिको ( गयं) पहुंचेहुए एसे ( अजिअसंति जिणजुयलं) दोनो जिनभगवान अजितनाथ और शान्तिनाथस्वामी ( मए ) मुझसे ( एवं ) इस प्रकार (थुअं) स्तुति कियेगये। ११ शां• स्तव
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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