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अजिसशान्ति स्तवनम् ॥
(छाया) तपसा धुतसर्वपापकाः सर्वलोकहितमलप्रापकाः ते अजितशान्तिपादाः संस्तुताः ( सन्तः ) मे शिवसुखानां दायकाः भवन्तु ( संस्तुताः शंसुखहेतुस्तुतं येषां )।
(पदार्थ) ( तवेण ) तपश्चर्यासे (धुय) नष्ट होगए हैं (सव्व) सम्पूर्ण ( पावया ) पातक जिन्होंके ( सर्व ) सम्पूर्ण (लोअ) लोकके ( हिअ ) मोक्षाव्यहितके ( मूल ) ज्ञानदर्शन चरित्ररूप मूलको ( पावया ) प्राप्तकराने वाले ( ते ) पूर्वोक्त ( अजिअ ) अजितनाथ स्वामी के
और ( संति ) शान्तिनाथ स्वामी के (पायया) चरण ( संस्तुताः ) सम्यक् वर्णन कियेसते ( संस्तुता) सुख हेतुक स्तवनहै जिन्होंका (मे) मुझे (सिव) मोक्षरूप (सुहाण) सुखके (दायया ) देनेवाले (हंतु ) होओ।
__(भावार्थ) तपोबलसे प्रनष्टहोगए हैं सम्पूर्ण पातक जिन्होंके सम्पूर्ण लोकके मोक्षास्यहितके ज्ञानदर्शन चारित्ररूप मूलको प्राप्तकरानेवाले. सुखहेतुक स्तवनहै जिन्होंका ऐसे. अजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामीके चरण मुझे मोक्षरूप सुख देनेवाले होओ।