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________________ अजितशान्ति स्तवनम ॥ ____५३ (छाया) स्वभावलष्टाः शमप्रतिष्टाः अदोषदुष्टाः गुणैः जेष्टाः प्रसादश्रेष्टाः तपसा पुष्टाः श्रिया इष्टाः ऋषिभिः जुष्टाः । (पदार्थ) ( सहाव ) स्वभाव से ( लट्ठा ) शोभायमान (सम) शान्तिसे (पठ्ठा) युक्त अथवा (असमप्रतिष्टाः निरूपम है स्व्याति जिन्होंकी ) ( अदोसदुहा) वैषभ्यरागादिकों से विकाररहित ( गुणेहिं ) सद्गुणोंसे ( जिट्ठा ) बड़े ( पसाय ) निर्मलतासे (सिट्ठा ) श्रेष्ट ( तवेण ) तपोबलसे ( पुट्ठा ) पुष्ट (सिरीहिं ) लक्ष्मीसे (इट्ठा) पूजित ( रिसीहिं ) ऋषियोंसे ( जुट्ठा ) सेव्यमान । (भावार्थ) स्वभावसे शोभायमान शान्तियुक्त वैषम्य रागादिकोंसे विकाररहित सद्गुणोंसे युक्त निर्भलतासे श्रेष्ट तपश्चर्यासे पुष्ट लक्ष्मीसेपूजित ऋषियोंसे सेव्यमान । (अपरांतिकाछंदः) ॥अपरांतिया ॥ ते तवेण धुयसपावया सवलोआहिअमूल पावया । संयुया आजिअसंतिपयया हुंतु मे सिवसुहाणदायया ॥ ३४॥
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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