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अजितशान्ति स्तवनम् ।
( भावार्थ ) गान और वादनकला में निपुण, देवोंके साथ भाक्तचश होकर देवलोक से आकर मिलीहुई अप्सराओंसे,
और श्रेष्ट देवताओंकी प्रीतिको बढ़ानेवाले गुणोंमें पण्डित, ऐसी देवाङ्गनाओंसे सम्यक् नमस्कृत और मोक्षसुखके हेतु जगतमें श्रेष्टहै शासन जिनका. ऐसे जिनभगवानके चरण ऋषि और देवगणोंसे वंदन कियेगए और स्तुति कियेगए।
(नाराचकछंदः)
॥ नारायउ॥ वंससद्द तंतितालमेलिए तिउक्खराभिरामसद्दमीसए कएअ सुइसमाणणेअ सुद्धसजगीअपायजालघंटिआहिं । वलयमेहलाकलावनेउराभिराम सहमीसए कए अ देवनट्टिआहिं हावभावविन्भमपगारएहि॥नचिऊण अंगहारपहिं वंदिआ य जस्स ते सुविकमा कमा त यं तिलोय सव्व सत्त संतिकारयं । पसंतसवपावदोष मेसहं नमामि संत्ति मुत्तमं जिणं ॥ ३१ ॥