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________________ अजितशान्ति स्ववनम् ॥ ( छाया ) भक्तिवशागतपिंडितकाभिः देववराप्सरो बहुकाभिः सुरवर रतिगुणपण्डितकाभिः देववधूभिः प्रयतं वा पदयोः प्रणतकस्य जास्यजगदुतमशासनस्य तौ ( ' क्रमौ ) ऋषिगणदेवगणैः स्तुतवन्दितौ । ४० ( पदार्थ ) ( भक्तिसागय ) भक्तिवशहोकर देवलोकसे आकर ( पिंडिअयाहिं ) मिलीहुईं ( देववर ) नृत्यकला श्रेष्ट देव और ( अच्छरसा ) अपसराओंका ( बहुयाहिं ) समुदायों से ( सुखर ) श्रेष्ट देवताओंकी ( रइ ) प्रीति के उत्पादक ( गुण ) गुणोंमें ( पंडिआहिं ) निपुण ( देवहूहिं ) देवांगनाओंसे ( पयओ) सम्यक् अथवा ( चरणोंमें ) ( पणमिअस्सा ) नमस्कृत ऐसे (जस्स) मोक्षके हेतु ( जग्) जगतमें ( उत्तम ) श्रेष्ट है ( सासणयस्सा ) शासन जिनका ऐसे ( अस्सा ) जिन भगवान के (तो) वे प्रसिद्ध चरण ( रिसिगण ) ऋषिगणों से और ( देवगणेहिं ) देवगणों से ( य ) स्तुति किये गए और ( वंदि ) वंदना किये गए ।
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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