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________________ अजितशान्ति स्तवनम् ॥ (छाया) जिनचन्द्र जितमोहं धुतसर्वक्लेशं तं अजितं प्रयतः अहं प्रणमामि । ४-६ ( पदार्थ ) ( जिणचंद ) सामान्य केवलियों में चांदके समान ( जिय मोहं ) जीत लिये हैं सांसारिकमोह जिनने (धुय) घोडाले हैं ( सव्व ) सम्पूर्ण ( किलेसं ) क्लेश जिनने ऐसे ( तं ) वे प्रसिद्ध ( अजिअ ) अजितनाथ स्वामी को ( पयओ) पवित्र होकर (अहं) मैं ( पणमानि ) नमस्कार करता हूं | ( भावार्थ ) सामान्य केवलियों में चांदके समान जीत लिये. सांसारिक मोह जिनने घोडाले हैं सम्पूर्ण क्लेश जिनने ऐसे वे प्रसिद्ध अजितनाथ स्वामीको मैं पवित्र होकर नमस्कार करता हूं । ( भासुरकंछंदः ) युगलं थुयवंदिअस्सा रिसिगणदेवगणेहिं तो देववहृहिं पयओ पण मिअस्सा | जस्स जगुत्तमसासणयस्सा भविस गया पीडियाहिं देववरच्छरसा बहुयाहिं सुखरts गुणपण्डियाहिं ॥ ३० ॥
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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