________________
अजितशान्ति स्तवनम् ॥
१५ देवांगनाओंसे (जस्स) जिनभगवानके (ते) वे प्रसिद्ध ( सुविक्कमा ) अत्यन्त पराक्रमशाली (कमा ) चरण ( वन्दिआ ) वन्दना कियेगए ( य ) और ( भत्ति ) अत्यन्त प्रेमसे ( संनिविठ्ठ ) व्याप्त ( वंदण ) नमस्कार के हेतु ( आगयाहिं ) आई हुई देवांगनाओं से ( अप्पणो ) अपने ( निडालएहिं ) प्रशस्त ललाटोंसे ( ते ) वे चरण ( पुणो पुणो ) बारबार ( वन्दिआ ) वन्दित ( हुन्ति ) होतेहैं।
(भावार्थ) अपूर्व अपांग तिलक और पत्रलेख इत्यादि नामों से विख्यातरचनाओंसे और आभूषणोंकी रचनाओंके प्रकार से भषित हैं शरीर जिन्होंके और आभूषणोंके किरणोंसे मण्डित ऐसी देवाङनाओंने जिनभगवानके प्रराक्रम शाली चरणोंको वन्दन किया और अत्यन्त प्रेमसे प्रपूरित नमस्कारके हेतु फिर आईहुई देवांगनाओंने उन चरणों को बारबार नमस्कार किया।
__ (नंदितकंछंदः)
- नंदिअयम् ॥ तमहं जिणचंदं आजिअं जिअमोहं धुयसब किलेसं पयओ पणमामि ॥ २९ ॥