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________________ अजितशान्ति स्तवनम् ॥ गारएहि केहि केहि वि अवंगतिलय पत्तलेहनाम एहिं चिल्लएहिं संगयं गयाहिं मतिसंनिविठ्ठवंदणा गयाहिं हुंति ते वंदिआ पुणो पुणो ॥ २८ ॥ ( छाया ) ४४ कैः कैरप्यपांगतिलकपत्रलेखनामभिः चिलगः मण्डनो दुणप्रकारकैः संगताकाभिः पादन्दाभिः देवसुदरीभिः यस्य तौ सुविक्रम क्रमौ वन्दितौ च भक्तिसन्निविष्टबन्द1. नागताभिः ( देवसुन्दरीभिः ) आत्मनः ललाटकैः तौ क्रम पुनः पुनर्वन्दितौ भवतः ( चिलगैः चित्तं लगन्तीति चिल्लाः तैः चिह्नगैः अतिरम्यैरित्यर्थः ) । ( पदार्थ ) ( केहि केहि ) वे अपूर्व (वि) भी ( अवंग ) नेत्रों में काजलकी रचना ( तिलय ) तिलक (पत्तलेह) कस्तूरी की स्तनोंपर विशेष रचना इत्यादि ( नाम एहिं ) नाम हैं जिन्होंके ( चिल्लरहिं ) अतिरम्य ( मण्डण ) आभूषणोंकी ( उदुण ) रचनाओं के ( पगारएहिं ) प्रकार से ( संगयं) युक्त हैं (अंगाहिं ) शरीर जिन्हों का ऐसी ( पाय ) शरीर के अथवा आभूषणोंके किरणो के (आ) समुदाय है जिन्होंपर एसी (देसुंदरी हि )
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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