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________________ ४२ अजितशान्ति स्तवनम् ॥ की स्त्री के समान गमन करनेवाली, मांसल नितंब और स्तनों से शोभायमान, सम्पूर्ण कमलपत्र के समान हैं नेत्र जिन्होंके ऐसी। (चित्राक्षराछंदः) चित्तक्खरा ॥ पीणनिरंतरथणभरविणमिअगायलयाहिं । मणि कंचणपसिढिलमेहलसोहिअसोणितडाहिं ॥ वरखिखिणिनेउरसात्तलयवलयाविभूसाणआहिं रइकरचउरमणोहरसुंदरदंसाणिआहि ॥ २७ ॥ (छाया) पीननिरंतरस्तनभरविनमितगात्रलताभिः . मणिकांचन प्रशिथिलभेखलशोभितश्रोणीतटाभिः . वरकिंकिणीनूपुर सत्तिलकवलयविभूषणाभिः रातकरचतुरमनोहरसुंदर दर्शनाभि । (पदार्थ) (पीण ) मांसल (निरंतर ) अन्तररहित (थण ) स्तनोंके (भर) भारसे (विणमिअ) नमूह (गायलयाहिं) गात्रलता जिन्होंकी ( माण) हीरेमाणिक और (कंचण) सोनेके ( पसिढिल ) प्रशिथिल ( मेहल ) मेखलाओंसे
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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