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अजितशान्ति स्तवनम् ॥
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(चतुर्भिकलापकं) (दीपकंछंदः)
॥ दीवयं ॥ अंबरंतर विआरणिआहिं ललिअहंसबहुगामिणिआहिं। पीणसोणथणसालणिआहिं सकलकमलदललोआणिआहि ॥ २६ ॥
. (छाया) . अंबरंतरविहारिणीभिः ललितहंसवधुगानिनीभिः पीन श्रोणिस्तनशालिनीभिः सकलकमलदललोचनाभिः ।
- ( पदार्थ) ( अंबरंतर ) आकाशमार्गमें ( विआणिआहिं ) संचार करने वाली ( ललिअ) सुन्दर (हंसवहू) हंस पक्षी की स्त्री के समान ( गामिणिआर्हि ) गमन करने वाली ( पीग ) पुष्ट ( सोण ) नितंब और ( थण ) स्तनों से ( सालणिआहि ) शोभायमान (सकल ) संपूर्ण (कमलदल) कमलपत्रके समान हैं (लोआणिआर्हि) नेत्र जिन्होंके। .
(भावार्थ) आकाश मार्ग में संचार करनेवाली, सन्दर हंस पक्षी