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अजितशान्ति स्तवनम्
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( छाया )
रागद्वेष भय मोहवर्जितं देवदानवनरेन्द्रवन्दितं उत्तम महा तपसं तं महामुनिं शान्तिनाथं अहमपि प्रांजलि: सन्
नमे ।
( पदार्थ )
(राग) प्रीति (देस) द्वेष (भय) डर ( मोह ) अज्ञान इन्होंसे ( वज्जिअं) रहित (देव) देवता (दानव) और दानव (नरिंद) राजाओं से (दि) नमस्कृत अथवा (देवदानवनरिंद) ऊर्ध्वलोकवासी अधोलोकवासी मध्यलोकवासी जीवों के (दि) कारागृह को नाश करनेवाले ( उत्तममहातः) उत्तम और दीघ्र तपश्चर्यावाले ( महामुणि) महामुनि ( संतिं ) शान्तिनाथ स्वामी को ( अहंपि ) मैं भी ( पंजली ) हाथ जोडकर ( नमे ) नमस्कार करता हूं । ( भावार्थ )
रागद्वेषभय और मोहसे रहित, देवदानव और राजाओं ने नमस्कार किया है जिनको अथवा तीनों लोक के जीवोंके संसाररूप कारागृह को तोडनेवाले, श्रेष्ठ तथा दीर्घ तपोबलधारी महामुनि शान्तिनाथ स्वामी को मैं भी हाथ जोडकर नमस्कार करताहूं । ।