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________________ अजितशान्ति स्तवनम् ॥ ( छाया ) वैर वियुक्ताः भक्तिसुयुक्ताः आदरभूषितसंभ्रमपिंडित सुष्टुसुविस्मितसर्वबलौघाः उत्तमकांचनरत्नप्ररूपितभास्वरभूषण भास्वरिताङ्गाः गात्रसमवनतभक्तिक्शंगतप्रांजलिप्रेषितशिरः प्रणामाः एतादृशाः सासुरसंघाः सुरसंघाः यं प्रति । ३७ ( पदार्थ ) ( बेर विउत्ता ) शत्रुता से रहित ( भत्तिसुजुत्ता ) सद्भक्तिसहित ( आयर ) बाह्योपचारसे (भूसिअ ) भूषित ( संभम) सत्वर ( पिंडिअ ) मिलेहुए (सर) अत्यर्थ ( सुविम्हिअ ) आश्चर्ययुक्त है ( सव्वबलोघा ) सम्पूर्ण वाहनादि समुदाय जिन्होंका, (उत्तम) देदीप्यमान ( कंचण ) सुवर्ण और ( रयण ) रत्नोंसे ( परूविअ ) कियेहुए ( भासुर ) प्रकाशमान (भूसण ) अलंकारों से ( भासुरि ) सुशोभित हैं ( अंगा ) अंग जिन्होंके ( गाय ) गात्रसे ( समोणय ) सम्यक् नमेहुए और ( भत्ति ) भक्तिके ( वसामय ) वशीभूत ( पंजलि ) ललाटपर स्थापित किए हुए मुकुलाकृति हस्तयुगलद्वारा ( पेसिअ ) किया है ( सीसपणामा ) मस्तकसे प्रणाम
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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