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________________ अजितशान्ति स्तवनम् ॥ ३६ आये हुए, ( संसभमो ) जलदीसे ( अरण ) आकाशसे उतरने से ( क्खुभिअ ) संचलित ( लुलिअ ) लुलित ( चल ) चंचल ऐसे ( कुंडल ) कानके आभूषण ( अंगय ) बाहुभूषण ( किरीड) मुकुटों से ( सोहंत ) शोभायमान हैं ( मउलिमाला ) शिरःपंक्ति जिन्होंकी । ( भावार्थ ) श्रेष्ट विमान सुन्दर सोनेकेरथ और घोडे इत्यादि वाहनों से शीघ्रही आये हुए और जलदी आकाश से उतरनेसे चलायमान लुलित और चंचल ऐसे कुण्डल बाहुभूषण और मुकुटों से शोभायमान हैं शिरः पंक्ति जिन्होंकी | ( रत्नमालाच्छंदः ) रयणमाला जं सुरसंघा सासुरसंघा वेरविउत्ता भत्तिसुजुत्ता आयरभूसिअसं भ्रमपिंडिअ सुरुसुविम्हि सव्वबलोघा । उत्तमकंचणरयणपरूविअभासुरभूषण भा सुरिअंगा गायसमोणय भत्तिवसागय पंजलिये सिअसीसपणामा || २३ ॥
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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