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________________ अजितशान्ति स्तवनम ॥ (भावार्थ) सातप्रकार के भयोंसे रहित, पापरहित, मैथनादि विषयोंमें आसक्तिरहित, शारीरिक रोगरहित, कामक्रोधादि शत्रुओंसे अजित ऐसे अजितनाथ स्वामी के चरणों में मैं नमस्कार करताहूं। ॥ वेष्टकच्छन्दः ॥ ॥ वेड्ढओ॥ (कलापकं) आगया वरविमाणदिवकणगरहतुरयपहकरसये हिं हुलिअं। ससंभमो अरणक्खुभिअलुलिअचल कुंडलंगयकिरीडसोहंतमउलिमाला ॥ २२ ॥ (छाया) वरविमानदिव्यकनकरथतुरगपरिकरशतैः शीघ्रं आगताः ससंभ्रमावतरणक्षुभितलुलितचलकुण्डलांगदकिरीटशोभनाना मौलिभलाः। (पदार्थ) ( वर ) श्रेष्ट (विमाण) विमान (दिव्य) सुंदर (कणग) सोनेके ( रह) रथ ( तुरय ) घोडोंके (पहकरसयेहिं) अनेक शत संघात द्वारा ( हुलिअं) शीघ्र ( आगया)
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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