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भजितशान्ति स्तवनम् ॥
जिन्होंने, ऐसे ( सासुरसंघाः ) असुर देवताओंके संघ के साथ ( सुरसंघा ) सुर देवताओंके संघ ।
(भावार्थ) वैरभावसे रहित, भक्तिपूर्वक बाह्योपचारसे भाषित सत्वर मिलेहुए अत्यन्त आश्चर्ययुक्त हैं सैन्यसमुदाय जिन्होंके, उत्तम सुवर्णमय और रत्नजटित देदीप्यमान अलंकारों से सुशोभित हैं अंग जिन्होंके, शरीरसे भली भांति झुके हुए अत्यन्त प्रेमके वशीभूत होकर हाथजोड किया है प्रणाम जिन्होंने ऐसे असुर देवता और सुर देवताओं का संघ ।
(क्षिप्तकच्छंदः)
॥ खित्तिअं॥ वंदिऊण थोऊण तो जिणं तिगुणमेव य पुणो पयाहिणं । पणमिऊण य जिणं सुरासुरा पमुइआ सभवणाई तो गया ॥ २४॥
(छाया) (ते ) सुरासुरा जिनं वंदित्वा च ( वाग्भिः ) स्तुत्वा ततः त्रिगुणं प्रदक्षिणं ( कृत्वा ) ( स्वस्थानगमनावसरे ) पुनरपि (तं) जिनं प्रणम्य प्रसुदिताः सन्तः ततः स्वभवनानि गताः।