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___अजित्तशान्ति स्तवनम् ॥
( भावार्थ ) हे इक्ष्वकुकुलोद्भव हे विदेहनगरके नरपति, हे मनुष्यों में श्रेष्ट हे मुनियोंमें उत्तम, हे शरदकालिकउदयहोने वाले सोलहकलाओंसेपरिपूर्ण चांदके समान मुखवाले, हे अज्ञानरूपअंधकारसे रहित, धुलगयेहैं बद्धकर्मरूपरज जिनके, सद्गुणोंसे श्रेष्टहै तेज जिनका, महामुनियोंसे भी अत्यन्त अधिकहै बलजिनका, विस्तीर्ण है वंश जिनका, ऐसे हे अजितनाथस्वामी मैं आपको नमस्कारकरताहूं हे सांसारिकजन्ममरणरूपभयको नाशकरनेवाले हे जगतको आश्रयदेनेवाले आप मेरे संरक्षकहो ।
( नाराचकच्छंदः)
. ( नारायउ) देवदाणविंदचंदसूरवंद हतुकृजिपरमलठ्ठ रूव धंतरुप्पपट्टसेयसुद्धनिद्धधवलदंतपंति संति सत्तिकित्तिमुत्तिजुत्तिगुत्तिपवर दित्ततेअवंद धेअ सव्वलोअभाविअप्पभावणेअ पइस मे समा: हिं ॥ १४ ॥
(छाया) हे देवदानवेन्द्रचन्द्रसूर्यवन्द्य हे हृष्टतुष्टज्येष्टपरमलषितरूप