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________________ • अजित शान्ति स्तवनम् ॥ 1, २२ ( शारदशशिवत् सकलं दीप्तिसहित आननंयस्य ) हे विगततमः हे विधूतरजः हे गुणैः उत्तमतेजः हे महामुन्यमित बल हे विलकुल हे अति तुभ्यं अहं प्रणमामि हे भवभयमूरण हे जगच्छरण ( त्वं.) मम शरणं असि । ( पदार्थ ) इक्खाग) हे इक्ष्वाकुकुलोद्भव (विदेहनरीसर ) 'हे विदेह जनपदाधिपति (नरवसहा ) हे मनुष्यों में श्रेष्ट (मुणिवसहा) हे मुनियों में श्रेष्ट (नव) उदयमान (सारयं ) शरत्कालिक (सकल) सोलहकलाओंसे परिपूर्ण (सास) चन्द्रमाके समान है ( आणण ) मुखजिनका ( विगय ) मष्टहोगया है (तम) अज्ञानरूप अंधकार जिनका (विहुये ) धुल गए हैं ( रज) कर्मरूप दोष जिनके (गुणेहिं) सद्गुणों से ( उत्तमतेअ ) श्रेष्ट है तेज जिनका ( महमुणि ) महामुनियोंसेमी ( अभिअबला ) अत्यन्त अधिक है बल जिनका ( बिलकुला ) विस्तीर्ण है वंशजिनका (अजिअ ) अजितनाथस्वामी (ते) आपको ( पणमामि ) मैं नमस्कारकरताहूं (भवभय) सांसारिक भयको ( मूरण ) नष्टकरनेवाले ( जगसरण) हे जगतको आश्रय देनेवाले ( मम ) मेरे ( सरण) रक्षक हो ।
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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