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________________ (जिणं ) जिनभगवान् ( संति ) शान्तिनाथस्वामीकी ( मे ) मेरे ( संतिं ) उपसर्गोके नाशको ( विहेउ) करनेकेलिये ( थुणामि ) स्तुतिकरताहूं। (भावार्थ) मूर्तिमान उपशम मोक्षलक्षणस्वसामीप्यको देनेवाले सकलभयकारकमृत्युसे तिरेहुए और स्वभक्तोंको तिराने वाले ऐसे उन प्रसिद्ध जिनभगवान शान्तिनाथस्वामीकी मेरे दुःखोंके नाशकेहेतु में स्तुतिकरताहूं। (चित्रलेखाछंदः) . (चित्तलेहा) इस्खाग विदेहनरीसर नरवसहा मुणिवसहा । नवसारयससिसकलाणण विगयतमा विहुयरया ॥ अजिउत्तमतेअगुणेहिं महामुणिअमिअबला । वि. उलकुला पणमामि ते भवभयमरण जगसरणा मम सरणं ॥ १३॥ (छाया) हे ऐक्ष्वाक हे .विदेहनरेश्वर हे नरवृषभ हे मुनिवृषभ हे नवशारदसकलशश्यानन (भाषायां सकलशब्दस्य परनिपात आर्षत्वात् ) अथवा नक्शारदशशिसकलानन
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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