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________________ २० भजितशान्ति स्तवनम् ।। रंजनकरनेवाले सुंदरहवोलियोंसे श्रेष्ट बहोत्तरहजारनगरोंके वणिकस्थानोंके और देशविशेषोंके पति बत्तीसहजार मुकुटधारी राजाओंसे अनुयातहै मार्गजिन्होंका चौदह श्रेष्ट रत्न नो महानिधि और चौंसटहजार अत्यन्तसुंदर युवतियोंके मनोहरपति चोरासीलाख हाथी घोडे और रथोंके अधिपति छानवेकोट गावोंके स्वामी ऐसे भारतक्षेत्र में भगवान होतेहुए। (रासानंदितकंछंदः) (रासानंदिअयं) (युगलं ) ॥ तं सन्तिं संतिकरं संतिणं सव्वभया । संति थुणामि जिणं संति विहेउमे ॥१२॥ . (छाया) शान्ति स्वान्तिकरं सर्वभयात् संतीर्ण एतादृशं तं शान्ति जिनं मे शान्ति विधातुं स्तौमि | (पदार्थ) (संति ) मूर्तिमान उपशम (संतिक ) अपने मोक्षलक्षणसामीप्यको (२) देनेवाले ( सव्वभया ) सम्पूर्णको भयहै जिससे ऐसे मृत्युसे (संतिण) तिरेहुए और स्वभक्तोंको तिरानेवाले ऐसे (तं ) उन प्रसिद्ध
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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