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________________ १६ अजितशान्ति स्तवनम् ॥ नाद के समान है ( महुरयर ) अत्यन्तमधुर ( सुभगिरं) शुभवाणी जिनकी । ( भावार्थ ) दीक्षा ग्रहण के पहिले अयोध्यापुरीके राजा श्रेष्टगजके मस्तकसमान प्रशस्त और विस्तीर्णहै शुभसंस्थान जिन्होंका, कठोर और समान है वक्षस्थल जिन्होंका मदोन्मत्त और लीलाकरनेवाले श्रेष्टगंधगजके गमनके समान है चरणोंकीगति जिन्होंकी, स्तुतियोग्य, हाथीकी सूंडकेसमान हैं भुजा जिन्होंकी अत्यन्त तपे हुए सोने के आभूषणसमान है स्वच्छपीतवर्ण जिन्होंका, श्रेष्टचक्रांकुशादि चिन्होंसेयुक्त और दर्शनीय है मनोहररूप जिन्होंका, कानोंको सुखदेनेवाली और मनको आल्हाददायक अत्यन्त रमणीय और श्रेष्ठ ऐसी देवोंकी दुंदुभिके नाद समान है अतिमधुर शुभवाणी जिन्होंकी । (रासलुधकछंदः ) (रासलुब्छउ ) अजिअं जिआरिगणं जिअसव्वभयं भवोहरिडं । प्रणमामि अहं पयउ पापसमे मे भयवं ॥ १० ॥
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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