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अजितशान्ति स्तवनम् ॥
(पदार्थ)
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(सावत्थि ) अयोध्या के (पुत्र) दीक्षाग्रहणके पहिले ( पत्थिवं ) राजा ( च ) पादपूरणे ( वर ) श्रेष्ट (हत्थिमत्थय ) हाथी के मस्तक समान (पसत्थ) प्रशस्त और (वित्थिन्न ) विस्तीर्ण हैं ( संथिअं ) शुभसंस्थान जिनका (थिर) कठोर और ( सरिच्छ ) अविषम है ( वच्छं ) वक्षस्थल जिनका ( मयगय ) मदयुक्त और ( लीलायमाण ) लीलाकरनेवाले ( वरगंधहत्थि ) श्रेष्ठ गंधगजके ( पत्थण) गमन के समान है ( पत्थि ) चरणोंकीगति जिनकी (संथव ) स्तुतिके (अरिहं) योग्य (हत्थि ) हाथीकी ( हत्थ ) सूंडके समान हैं ( बाहुं ) भुजा जिनकी ( धंत ) खूबत पे हुए ( कणग ) सोनेके ( रुयग ) आभूषण के समान ( निरुवहय ) स्वच्छ है ( पिंजरं ) पीतवर्ण जिनका (पवर ) श्रेष्ट (लक्खण) चक्रांकुशादि चिन्होंसे ( उवचिय ) युक्त और (सोम्म) दर्शनीय ( चारु ) मनोहर हैं ( रूवं ) रूप जिनका (सुइ) कानोंको (सुह ) सुखदेनेवाली (मणाभिराम ) मनको - आल्हाददेनेवाली (परमरमणिज्ज ) अत्यन्तरमणीय (वर) श्रेष्ट ऐसी ( देवदुंदुहि ) देवोंकी दुंदुभिके ( निनाय )