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________________ सिग्यमवहर स्तोत्र ॥ चांदकेसमान (अभयदेवो) भयरहित अत्यन्तप्रतापशाली (जिणवल्लहो ) सामान्यकेवलियोंके प्यारे ( वद्धमाणा) वर्द्धमान ( पहु) प्रभु (मं) मेरा ( रक्खउ ) रक्षणकरो ॥१०॥ ...... (भावार्थ) ..... चतुर्विधसंघकेस्वामी जिनेश्वरभगवान् सुंदरक्रियाशाली संघके साथ सामान्यकेवालयोंमें चांदकेसमान भयरहित अत्यन्तप्रतापवान सामान्यकेवलियोंके प्यारे ऐसे वईमान प्रभु मेरा रक्षणकरो ॥ १० ॥ ॥ गाथा ॥ सोजयउवद्धमाणो जिणेसरोणेसरुवहयतिमिरो। जिणचंदाभयदेवा पहुणोजिणवल्लहाजेय ॥ ११ ॥ (छाया) जिनेश्वरः ( सरुव्व ) आदित्य इव हततिमिरः सः वर्द्धमानः जयतु ( तथा ) जिनचंद्राः अभयदेव जिनवल्लभाः प्रभवः जयंतु ॥ ११ ॥ . (पदार्थ) . ( जिणेसरो ) जिनेश्वरभगवान (णेसरुब्ध ) सूर्यके समान ( हयतिमिरः ) नष्टकियाहै अज्ञानरूपअंधकार
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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