SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिम्यमत्रहर स्तोत्र ॥ ऐसी ( चक्केसरि ) चक्रेश्वरी देवी ( सिवसरणि ) मोक्ष मार्गमें ( लग्ग ) लगेहुए ( संघरस ) चतुर्विधसंघके (विघागि ) अन्तराय ( सव्वहा ) सबप्रकारसे (हरउ) हरणकरो ॥ ९॥ (भावार्थ) जैनक्रियाके मार्गमें अडचन पहुंचानेवाले शत्रुओंकी अच्छेप्रकारसे काटीहै गर्दन जिसने और चक्रको धारण करनेवाली ऐसी चक्रेश्वरी देवी मोक्षमार्ग में लगेहुए चतुर्विधसंघके अन्तराय सबप्रकारसे दूरकरो ॥ ९॥ __ गाथा ॥ तित्थवइवद्धमाणो जिणेसरोसंघउंसुसंघेण । जिणचंदोभयदेवोरक्खउ जिणवल्होपहुमं ॥ १० ॥ (छाया) तीर्थपतिः जिनेश्वरः सुसंवेन संगतः जिनचंद्रः अभयदेवः जिनकल्लभः वर्द्धमानः प्रभुः मां रक्षतु ॥१०॥ (पदार्थ) (तिस्थिवइ ) चतुर्विधसंघकेस्वामी ( जिगसरो ) जिनेश्वरभगवान ( सुसंघेग ) सुन्दरक्रिय शाली संघके ( संघठ) साथ (जिणचंदो ) सामान्यकेवलियोंमें
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy