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सिमहर स्तोत्र ||
जिन ने ऐसे ( सो ) वे प्रसिद्ध ( बद्धमाणो ) वर्द्धमान स्वामी ( जयउ ) विजयी होओ. पैसेही (जिणचन्दा) जिनोंमें चांदके समान ( अभयदेवा ) निर्भय और प्रतापशाली ( जिणवल्लहा ) जिनके प्यारे (पहुणो ) प्रभु तीर्थंकर भगवान् (जेय ) विजयशाली होओ । ११ । ( भावार्थ )
सूर्यके समान नष्ट किया है अज्ञानरूप अंधकार जिनने ऐसे जिनेश्वर भगवान वे प्रसिद्ध वर्द्धमानस्वामी विजयी होओ. वैसेही जिनोंमें चांदकेसमान निर्भय और प्रतापशाली जिनोंके प्यारे ऐसे शेष तीर्थकरप्रभु भी विजयशाली होओ ॥ ११ ॥
( गाथा )
गुरुजिणवलहपाए भयदेवप हुत्तदा यगेवंदे । जिणचंदजईसरखद्धमाण तित्थबुढिकए ॥ १२ ॥
( छाया )
अहं अभयदेवप्रभुत्वदायकान् गुरुजिनवल्लभपादान् वंदे ( तथा ) वर्द्धमानतीर्थस्यवृद्धिकृते जिनचंद्रजिनेश्वरौ वन्दे ॥ १२ ॥