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________________ सिंग्घमवहर स्तोत्र ॥ (विहिय ) कियाहै ( भब्यसत्त ) भव्यजीवोंको (सुहा) सुख जिन्होंने ऐसे (गणवदणो ) गणधर ( सया) निरंतर (सिरिवद्धमाणजिण)श्रीमहावीरप्रभु जिनभगवानने स्थापनकिएहुए (तित्थ ) चतुर्विधसंघकी ( सुत्थयं ) निरुपद्रवता ( कुणन्तु ) करें ॥२॥ _ (भावार्थ) .. . वे प्रसिद्ध गौतमस्वामी और सुधर्मस्वामी, प्रमुख जिन्होंमे कियाहै भव्यजीवोंको सुख जिन्होंने ऐसे गणधर श्रीजिनभगवान महावीरस्वामीने स्थापनकिएहुए चतुर्विध संघके उपद्रवोंका नाशकरें ॥२॥ ॥गाथा ॥ सकाइणोसुराजे जिणवेयावच्चकारिणोसन्ति । अवहरियविग्यसंघा हवन्तु ते संघसन्तिकरा ॥३॥ (छाया) ये अपहृतविनसंघाः जिनवैयावृत्यकारिणः शक्रादयः सुराः सन्ति ते संघशान्तिकयः भवन्तु ॥ ३ ॥ - ( पदार्थ) (जे) जो ( अवहरिय ) नष्ट होगएहैं (विग्यसंघा) 'अन्तरायोंके समूह जिन्होंके और ( जिण ) जिनतीर्थ
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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