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________________ सिग्मवर स्तोत्र ॥ करभगवानको ( क्यावच्च ) वैयावच्च ( कारिणो ) करने वाले (सक्काइणो ) इन्द्रप्रमुख ( सुरा) देवता (सन्ति) ( ते ) वे ( संघ ) चतुर्विधसंघको ( सन्तिकरा ) शान्तिसुखके करनेवाले ( हवन्तु ) होओ ॥ ३ ॥ (भावार्थ ) नष्टहोगएहैं अन्तरायोंके समूह जिन्होंके और जिनतीर्थकर भगवानकी वैयाबच्च करनेवाले जो इन्द्रप्रमुख देवता हैं वे चतुर्विधसंघको शान्तिसुखके करनेवाले होओ ॥ ३ ॥ ॥ गाथा ॥ सिरिथंभणयट्टियपाससामिपय पउमपणयपाणीणं । निलियदुरियविंदो धरणिंदो हरउ दुरि याई ॥ ४ ॥ (छाया) श्रीस्तंभनकस्थित पार्श्वस्वामिपदपद्मप्रणतप्राणिणां निर्दलितदुरितवृंद धरणेन्द्रः दुरितानि हरतु ॥ ४ ॥ ( पदार्थ ) ( सिरि) शोभायुक्त ( थंभणय ) स्तंभनकपुर में ( द्विय) वास करनेवाले ( पाससामि ) पार्श्व भगवानके
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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