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________________ सिग्घमवहर स्तोत्र ॥ ऐसे ( भणपुर ) स्तंभनपुरमें (डिओ ) रहनेवाले (सिरिपासजिणो ) श्रीपार्श्वजिनभगवान (विग्धं ) अन्तरायका ( सिग्धं ) जलदीसे ( अवहरउ ) नाशकरें ॥१॥ (भावार्थ) श्री महावीरप्रभुकी आज्ञाको पालनकरनेवाले चतुर्विधसंघके पापोंको नाश कियाहै जिनने ऐसे स्तंभनकपुरमें निवास करनेवाले श्रीपार्श्वजिनभगवान अन्तरायका सत्वर नाशकरें ॥१॥ ॥गाथा ॥ गोयमसुहम्मपमुहा मणवइणोविहियभव्वसत्त. सुहा । सिरिवद्धमाणजिणतित्थ, सुत्थयंते कुणंतु. सया ॥२॥ (छाया) तेगौतमसुधर्मप्रमुखाः विहितभव्यसत्वसुखाः गणपतयः सदा श्रीवईमानाजनतीर्थस्वस्थतां कुर्वन्तु ॥ २ ॥ (पदार्थ ) (ते ) वे प्रसिद्ध, ( गोयम ) गौतमस्वामी और ( सुइम्म ) सुधर्मस्वामी हैं ( पमुहा ) मुख्य जिन्होंमें
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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