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________________ गुरुपारतन्त्र्यस्तोत्रम् ॥ (भावार्थ ) जैसे सूर्य रात्रिके अन्धकारको सत्वर नष्ट करता है वैसे ही रागादि दोषरहित सूरिजिनेश्वराचार्यने दशम असंयमीरूप पूजा लक्षण आश्चर्य रूप रात्रिमें स्फुरायमाण स्वच्छन्द शिथिलाचारियोंका मतरूप अन्धकारको शीघ्र नष्ट किया ॥ ११ ॥ अथ जिनचन्द्रसुरिस्तुतिं श्लेषालंकारेणाह ॥गाथा ॥ सुकइत्तपत्तकित्ती पयडिअगुत्तीपसंतसुहमुत्ती । पहयपरवाइदित्ती जिणचन्दजईसरोमंती ॥ १२ ॥ ___(छाया) सुकवित्वप्राप्तकीर्तिः प्रकटितगुप्तिः प्रशान्तशुभमूर्तिः प्रहतपरवादिदीहिः मंत्री जिनचन्द्रयतश्विरः नंदतात् ।।१२।। (पदार्थ ) ( सुकइत्त ) सुकवित्वद्वारा (पत्तकित्ती ) प्राप्त की है कीर्ति जिनने ( पयडिअ) प्रकट की है (गुत्ती) मनोवाक्वायसंवरणादिरूप गुप्ति जिनने ( पसंत ) क्रोधादिकषायरहित ( सुह ) मंगलकारक है ( मुत्ती ) शरीर जिनका ( पहय ) निरस्त किया है ( परवाइ)
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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