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________________ गुरुवारतः यस्तोत्रम् ॥ सिद्धान्तोक्तयुक्तिपूर्वक बलात्कारले मतखण्डनमें समर्थ, और जिनमत में निश्चल, और युगप्रवर सुधर्मस्वामी के निर्दोष अङ्गोपाङ्गरूप सिद्धान्त के निरंतर अभ्यास से प्रसिद्ध, और प्रणाम करते हैं सद्गुणीजन जिनको ऐसे ॥ ९ ॥ ॥ गाथा ॥ १२ पुरउदुलहमहिवलहस्स अणहिलवाडएपयडं । मुकाविआरिऊणं सीहेणवदव्वलिंगिगया || १० || ( छाया ) (a) अनहिपाटके दुर्लभमहीवल्लभस्य पुरतः विचार्य सिंहेन गजा इव प्रकटं लिंगिनः मुक्ताः ॥ १० ॥ ( पदार्थ ) ( अणहिलवाडए) अनहिल पाटक नामके नगर में ( दुलह महिलहस्त ) दुर्लभसंज्ञक राजाके ( पुरउ ) सामने ( विआरिऊणं ) वाद प्रतिवाद कर ( सीहेणवदव्वगया ) जैसे सिंह हाथियोंको चीरकर फेंक देता है वेसेही ( पयडं ) सब लोगों के सामने ( लिंग ) शिथिलाचारी साधु ( मुक्का ) जिनदत्तसू रिसे शास्त्रार्थ में हराएगऐ ॥ १० ॥
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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