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________________ गुरुपारतन्त्र्यस्तोत्रम् ॥ जिन्होंने ( सिवसुह ) मोक्षसुखके ( साहण ) साधनमें ( सज्जा ) सावधान (भव ) संसाररूप (गुरुगिरि ) भारी पर्वत को ( चूरणे ) नष्ट करने में (वज्जा ) वज्रके समान ॥५॥ (भावार्थ) सद्गुणोसे युक्त भव्यजीवोनेकीहै पूजा जिन्होंकी तत्काल अंगीकार की है पापरहित चारित्रकी दीक्षा जिन्होंने मोक्षसुख के साधनमें सावधान संसाररूप भारीपर्वतको नष्ट करनेमें वज्रके समान ॥ ५ ॥ . ॥गाथा ॥ अजमुहम्मप्पमुहा गुणगणनिवहासुरिंदविहियमहा। ताणतिसंझनामं नामंनपणासइ जियाणं ।।। .. (छाया) गुणगणानिवहाः सुरेंद्रविहितमहाः ( एतादृशाः) आर्यसुधर्मप्रमुखाः गणधराः सन्ति तेषां त्रिसंध्यं (स्मृतं) नाम जीवानां आमं न प्रणाशयतीति न अपितु प्रणाशयत्येव ॥ ६ ॥ ' (पदार्थ) ( गुणगण ) आचार्य के छत्तीस सद्गुणोंके समुदाय को ( निवहा ) निरंतर धारण करने वाले ( सुरिंद)
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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