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गुरूपारतन्त्र्यस्तोत्रम् ||
देवोंके अधिपति इन्द्रने ( विहिय ) की है (महा) पूजा जिन्होंकी ऐसे ( अज्ज ) पूज्य ( सुहम्म ) सुधर्म स्वामी हैं ( प्पमुहा ) मुख्य जिन्होंमें ऐसे गणधरोंका ( तिसंझं ) त्रिकाल ( नाम ) नामस्मरण ( जियाणं ) जीवोंकी ( आमं ) व्याधियोंको ( न षणासइ) नहीं प्रणाश करता ( न ) ऐसा नहीं अर्थात् प्रणाश करताही है ॥ ६ ॥ ( भावार्थ )
आचार्य के छत्तीस गुणों को निरंतर धारण करनेवाले, देवाधिपति इन्द्र ने की है पूजा जिन्होंकी, ऐसे परम पूज्य सुधर्मस्वामी प्रमुख गणधरोंका त्रिकाल नामस्मरण जीवोंकी सकल आधिव्याधियोंको नष्ट करता है ॥ ७ ॥ ॥ गाथा ॥ पडिवज्जियजिणदेवो देवायरिदुरंतभवहारि । सिरिनेमिचंद सूरि उज्जोयणमूरिणोसुगुरू ॥ ७ ॥ ( छाया )
प्रतिपन्नजिनदेवः देवाचार्यः दुरंतभवहारी श्रीमचन्द्रसूरिः सुगुरुः उद्योतनसूरिः एतेत्रयः विजयंन्तामित्यध्याहार्य्यम् ॥ ७ ॥
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