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गुरुपारतन्त्र्यस्तोत्रम् ॥
( खीरोदाहिणुव्व ) क्षीरसमुद्रसमान ( अल्गाहा ) अगाध ॥४॥
(भावार्थ) दुरकीहै जीवोंकी पीडा जिन्होंने नष्ट किया है दुःखरूप दाह जिन्होंने मोक्षरूप आम्रवृक्षकी शाखा समान भलीभाँतिप्राप्तकरवायाहै भव्यजीवोंको इच्छित सुखका लाभ जिन्होंने क्षीरसमुद्रसमान अगाध ॥ ४ ॥
॥गाथा ॥ सगुणजणजणियपुज्जा सज्जोनिरवज्जगहिय । पन्बज्जा ॥ सिवसुहसाहणसज्जा भवगुरुगिरिचूरणेवजा ॥५॥
(छाया) सगुणजनजनितपूजाः सद्योनिरवद्यगृहीतप्रव्रज्याः - सुखसाधनसज्जाः भवगुरुगिरिचूर्णनेबज्राः ॥ ५ ॥
(पदार्थ ) सगुण ) सद्गुणोंसे युक्त ( जण) भव्यजीवोंने
) की है ( पुज्जा ) पूजा जिन्होंकी . ) तत्काल (निरवज्ज) पापरहित (गहिय )
कार की यै ( पवज्जा) प्रव्रज्याचारित्रदीक्षा