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________________ गुरूपारतन्त्र्यस्तोत्रम् ॥ ( भावार्थ ) प्राप्तकी है उत्तम यतिलकी शोभा यतित्वकी शोभा जिन्होंने सम्पूर्ण परतीर्थिजनोंको उप्तन्न किया है संक्षोभ जिन्होंने नष्ट किया है लोभरूपयोधा जिन्होंने बतलाया है अत्यन्त गंभीर अर्थशाली शास्त्र समूह जिन्होंने ॥ ३ ॥ ॥ गाथा || परिहरियसत्तवाहा हयदुहदाहासिवंबतरुसाहा || संपाविय सुलाहा खीरोदहिणुव्वअग्गाहा ॥ 8 ॥ (छाया) परिहृतत्वबाधाः हतदुःखदाहाः शिवाम्रतरुशांखाः संप्रापित सुखलाभाः क्षीरोदधिरिवागाधाः ॥ ४ ॥ ( पदार्थ ) ( परिहरिय ) नष्ट की है ( सत्त ) जीवोंकी ( वाहा ) पीडा जिन्होंने ( हय) मिटाया हैं ( दुहदाहा) दुःखरूप दाह जिन्होंने ( सिव ) मोक्षरूप ( अंबतरु ) आम्रवृक्षकी ( साहा ) शाखा समान ( संपात्रिय) सम्यक् प्रकारसे प्राप्त करवाया हैं ( सुहलाहा ) वाञ्छित सुखका लाभ जिन्होंने
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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