________________
गुरूपारतन्त्र्य स्तोत्रम् ॥
इ'
समुद्रके समान अष्ठमदोंसे रहित ज्ञानादिगुणोंके समूह रूप रत्नोंकी लक्ष्मीके लाभको देनेवाले ऐसे सुगुरु सुधर्मस्वामि प्रमुख आचार्योंके आम्नायको आदर पूर्वक नमस्कार कर स्तुति करता हूं ॥ १ ॥ ॥ गाथा ॥ निम्महियमोहजोहा नियविरोहा पण संदेहा | पण यंगिवग्गदाविय सुहसंदोहा सुगुणगेा ॥ २ ॥ ( छाया ) निर्मथितमोहयोधाः निहतविरोधाः प्रणष्टसंदेहाः प्रणताङ्गिवर्गदापितसुखसंदोहाः सुगुणगेहाः ॥ २ ॥ ( पदार्थ )
( निम्महिय ) नष्ट किये हैं ( मोहजोह ) मोहरूप योधा जिन्होंने ( पण ) नष्टकिये हैं ( संदेहा ) हृदयके संदेह जिन्होंने ( पणयंगि) प्रणाम करने वाले प्राणियोंके ( वग्ग ) समुदायको ( दाविय ) दीये हैं ( सुह ) सुखके (संदोहा) समूह जिन्होंने (सुगुण) छत्तीस श्रेष्ट गुणोंके (गेहा ) निवास स्थान ॥ २ ॥ ( भावार्थ )
नष्ट किये हैं मोहरूपयोचा जिन्होंने उन्मूलित किये