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________________ संजय स्तोत्र ॥ ( पदार्थ) ( सखित्तपालया ) क्षेत्रपालोंके साथ (दसदिसपाला) दशदिग्पाल (सनक्खित्ता ) सत्ताईस नक्षत्रोंके साथ ( नवग्गहा ) नोग्रह (जोइणि ) योगिनी ( राहुग्गह ) राहु नाम ग्रह ( कालपास ) कालपाशयोग (कुलिय ) कुलिकयोग ( अद्धपहरोहिं ) अर्धप्रहर योगोंके साथ ( सहकालकंट एहिं ) कालकंटक योग के साथ ( सविधि) भद्राके साथ ( वत्थेहिं ) वत्स सहित ( कालवेलाहिं ) कालवेलाके साथ ( सधे ) संपूर्ण दिक्पालादि (सब्बस्स) संपूर्ण (संघरस) संघको (सव्वत्थ) सब अर्थ सहित (सुहँ ) सुख ( दिसन्तु ) देओ। (भावार्थ) क्षेत्रपालकोंके साथ सत्ताईस नक्षत्रों के साथ योगिनी राहुग्रह कालपाशयोग, कुलिकयोग, अर्धप्रहरयोग कालकंटक योग भद्रा वत्सयोग कालवेला इत्यादि योगोंके साथ दशदिक्पाल और नवग्रह ये सब सम्पूर्ण संघको सब मनोवाञ्छितं सुख देओ। । (गाथा) ' भवणवइवाणमंतर जोइसवेमाणि यायजे देवा । धराणंदसक सहिया दलंतु दुरियाई तित्थस्सा॥२०॥
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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