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तंजय स्तोत्र ॥
नामक व्यंतर और (गीयजसो ) उत्तर दिग्भव गीतयश नामक व्यंतर ( सपरिवारो ) द्वादश विध गंधर्व निकाय सहित (सुहं ) सुख ( दिसउ ) देओ।
(भावार्थ) जिनशास्त्रमें निश्चित सुमार्गानुसार आराधन में सावधान ऐसे भव्य जीवोंको उत्पन्न किया है तीर्थ यात्रादि उत्सवमें सहाय जिनने ऐसे दक्षिणोत्तरभव गीतरति.
और गीतयश नामके व्यंतरद्वय द्वादशविधगंधर्व निकाय सहित चतुर्विध संघको सुख देओ।
(गाथा) गिहि गुत्त खित्त जल थल वण पचय वास देव देवीउ ॥ जिणसासणहिआणं दुहाणि सव्वाणि निहणंतु ॥ १७ ॥
(छाया) ग्रहगोत्रक्षेत्रजलस्थलवनपर्वतवासिदेवदेव्यः जिनशासनस्थितानां सर्वाणि दुःखानि निक्षन्तु ।
. (पदार्थ) - (गिहि) घरमें ( गुत्त ) गोत्रमें (खित्त) क्षेत्रमें (जल) जलमें ( थल ) स्थलमें ( वण ) वनमें (पव्वय) पर्व
३ त० स्तो