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तंजय स्तोत्र ॥
वाले (वि) भी ( तित्थरस ) चतुर्विध संघको ( संतिकरा ) दुरितोपशमन करने वाले ( हवन्तु ) होओ, ( भावार्थ )
जिन शास्त्रमें किया है आदर जिन्होंने महिषवध रूप निंदनीक मार्ग से सर्वथा जुदे और सब वेयावच्च करनेवाले भी चतुर्विध संघको दुरितोपशमन करनेवाले होओ.
( गाथा ) जिणसमय सिद्ध सुमगा वहिय भव्वाण जाणय साहृज्जो || गीयरई गीयजसो स परिवारो सुहंदि -
सउ ॥ १६ ॥
(छाया)
जिनसमयसिद्धसुमार्गवहितभव्यानां जनितसहाय्यः सपरिवारः गीत रतिः गीतयशाः सुखं दिशतु. ( पदार्थ )
( जिण समय) जिनशास्त्रमें (सिद्ध) निश्चित (सुभगा ) जो सुमार्ग उसमें ( वहिय ) आश्रव रहित ( भव्वाण ) भव्यजीवोंको ( जागिय ) उत्पन्न किया है ( साहज्जो ) साहाय्य जिसने ऐसेगीयरई) दक्षिण दिग्भव गतिरति