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________________ तंजय स्तोत्र ॥ पिन- 12 अस्स ) प्रकट किया हुआ ( समग्गरस ) समग्र ( तित्थरस ) चतुर्विधसंघका (कुसलं ) कुशल ( कुणन्तु ) करो. ( भावार्थ ) मोक्षसुखमें आकांक्षा है जिन्होंकी ज्ञानादिगुणों के समुदायकरके महान ऐसे श्रीहरिभद्राचार्यादिधर्माचार्य श्रीमहावीरप्रभुने प्रकट कियाहुआ समग्र चतुर्विधसंघका कुशल करो. ( गाथा ) जियपडिवक्खा जक्खा गोमुहमायंग गयमुह पमुक्खा || सिरिखंभसंति सहिआ कयनयरक्खा सिवं दितु ॥ ११ ॥ ( छाया ) श्रीब्रह्मशान्ति सहिताः कृतनतरक्षाः गोमुखमातंग गजमुखप्रमुखा जितप्रतिपक्षाः यक्षाः शिवं ददतु. ( पदार्थ ) ( जिय ) जीते हैं ( पडित्रक्खा ) भगवान केशासनके प्रतिपक्षी जिन्होंने ( कय ) की है (नत ) नमस्कार करनेवालोंकी ( रक्खा ) रक्षा जिन्होंने ( सिरि) शोभायुक्त ( बंभसंति ) ब्रह्मशान्तियक्ष के ( सहिता ) सहित (गोमुह )
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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