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________________ तंजय स्तोत्र n. . (सयल ) सम्पूर्ण ( संघस्स संघके ( सया) हमेश ( नीसेस ) सब (किलेस ) क्लेशोंको ( हरो ) नाशकरने वाला ( हवउ ) होओ. (भावार्थ ) भलेप्रकारसे प्राप्तकरायाहै भव्यप्राणियोंको मोक्षरूप सुख जिसने ऐसा सुन्दर चारित्ररूप धर्म सम्पूर्ण संधके सबक्लेशोंका हमेश नाश करनेवाला होओ. __ (गाथा) गुणगणगुरुणोगुरुणो शिवसुहमइणोकुणन्तुतित्थस्स। सिविद्धमाणपहुपय डिअस्सकुसलंसमग्गस्स ॥१०॥ (छाया) ' श्रीवर्द्धमानप्रभुप्रकटितस्यसमग्रस्यतीर्थस्य शिवसुखमतयः गुणगणगुरवः ( श्रीहरिमद्राचार्यादिधर्माचार्याः ) कुशलं कुर्वन्तु. ___ (पदार्थ) (शिवसुह ) मोक्षसुखमें ( मइणो ) मतिहौजिन्होंकी ( गुण ) ज्ञानादिगुणोंके ( गण ) समुदायकरके ( गुरुणो ) महान ऐसे श्रीहरिमद्राचार्याद्यनुरूप धर्माचार्य (सिविद्धमाणपहु ) श्रीमहावार प्रभुने ( पयडि
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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