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________________ तेजय स्तोत्र ॥ धर्म ( गुण ) ज्ञानादिगुणोंमें ( सुछियस्स ) निरंतर रहेहुए ऐसे ( संघस्य ) चतुर्विधसंघको (इह ) इस जगतमें ( सम्म ) सम्यक् प्रकारसे ( मंगलं ) कल्याण दिसउ ) देओ. (भावार्थ) सम्पूर्ण भव्यप्राणियोंके समुदायको कियाहै सुख जिसने ऐसा कपटरहित जैनशास्त्रोक्तधर्म ज्ञानादिगुणोंमें निरंतर रहेहुए ऐसे चतुर्विधसंघको इसजगत में मंगल देओ. (गाथा) रम्मोचरित्तधम्मो संपाविअभब्वसत्तसिवसम्मो ॥ नीसेस किलेसहरो हवउ सया सयल संधस्स ॥९॥ (छाया) संप्रापितभव्यसत्वशिवशर्मा रम्यः चरित्रधर्मः सकलसंघस्य सदा निःशेषक्लेशहरः भवतु. . (पदार्थ) (संपाविअ) भले प्रकारसे प्राप्तकरायाहै ( भव्वसत्व) भव्य प्राणियोंको (सिव ) मोक्षरूप ( सम्मो ) सुख जिसने ( रम्मो ) सुन्दर (चरित्तधम्मो ) चारित्र रूपधर्म
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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