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________________ ( तंजय स्तोत्र ॥ ज्ञान (च) और ( चरणमवि ) चारित्रभी (निव्वाणफलं) मोक्षहै फल जिसका ऐसा (हबई ) होता है (सिद्धियरं) सकलकार्य साधक (तं ) वह (तित्थस्स ) तीर्थके (दसण ) दर्शन ( मंगुलं) दुर्ध्यानको ( अवणेउ ) दुरकरो (भावार्थ) जिससे प्राप्त कियाहुआ ज्ञान और चारित्र भी मोक्षफल रूप होताहै ऐसा वह सकल कार्य साधक तीर्थका दर्शन हमारे दुर्थ्यानको दूरकरो (गाथा) निच्छम्मो सुअधम्मो,समग्ग भव्वंगिवग्गकयसम्मो गुणसुष्ठियस्स संघस्स मंगलं सम्ममिह दिसउ ॥८॥ (छाया) समग्रभव्याङ्गिवर्गकृतशर्मा निश्छद्मः श्रुतधर्मः गुणसुस्थितस्य संधस्य मंगलं सम्यगिह दिशतु (पदार्थ) (समग्ग) संपूर्ण (भव्यंगि) भव्यप्राणियोंके ( वग्ग ) समुदायको ( कय ) कियाहै ( सम्मो ) सुखजिसने (निच्छम्मो ) कपटरहित (सुअधम्मो ) शास्त्रोक्त
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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