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तंजय स्तोत्र ॥
( पदार्थ )
( निव्वाण ) मोक्षके ( साहण) साधनमें ( उज्जय ) लगे हुए ( साहूणं ) साधुओंको ( जणिय ) उत्पन्नकी है ( सव्व ) सबत हासे ( साहझा ) मदत जिन्होंने (तित्थ ) चतुर्विधसंघ के ( पभावगा ) प्रभावको विख्यात करनेवाले ( ते ) वे ( परमेड्डिणो ) पञ्चमपरमेष्टी भगवान ( जइणो ) विजयी ( हवन्तु ) होओ ( भावार्थ )
मोक्ष के साधन में लगे हुए साधुओं को उत्पन्न की है सबतह से मदत जिन्होंने चतुर्विधसंघ के प्रभाव को विख्यत करनेवाले वे पञ्चमपरमेष्टी भगवान विजयी होओ. ( गाथा ) जेणाणुगयं नाणं, निव्वाणफलंच चरणमविहवई | तित्थस्स दंसणं तं मंगलमवणेउसिद्धियरम् ॥ ७ ॥ ( छाया )
येनानुगतंज्ञानं चचरणमा निर्वाणफलं भवति सिद्धिकरं तत् तीर्थस्य दर्शनं मंगुलं अपनयतु ( पदार्थ )
( जेण ) जिससे (अणुगयं ) प्राप्त किया हुआ (नाणं)