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तंजय स्तोत्र ॥
( पदार्थ ) (ए) वेप्रसिद्ध ( सम्म ) उत्तमप्रकारसे (सुअ) द्वादशांगरूप सिद्धान्तके ( वायगा )वाचक ( य ) और ( वायगा ) अनेक तत्वोंकेवाचक (वा) और (सिअवाय) स्याद्वादके ( वायगा ) स्पष्टकरने वाले ऐसे चतुर्थ परमेष्टी उपाध्यायभगवान ( सव्वस्स ) संपूर्ण (संघस्स) चतुर्विधसंघके ( पवयण ) उत्तम जिनशासनके ( पडिणीयकए ) प्रवेषियोंको ( वणिन्तु ) दूर करो
(भावार्थ ) वे प्रसिद्ध उत्तमप्रकारसे द्वादशांगरूप सिद्धान्तके वक्ता और अनेक तत्वोंके प्रकाशक और स्यादवादको स्पष्टकरने वाले ऐसे चतुर्थपरमेष्टी उपाध्याय भगवान सम्पूर्ण चतुर्विधसंघके जिनशासनाविहोषियोंको दूर करो
(गाथा) निब्वाण साहणुज्जय साहूणंजणियसब्वसाहज्झा॥ तित्थप्पभावगाते हवन्तुपरमेष्ठिणोजइणो ॥ ६ ॥
. (छाया) निर्वागसाधनोद्यतसाधूनां जनितसर्वसाहाय्याः तीर्थप्रभावकाः ते ( पञ्चम ) परमेष्टिनः जयिनः भवन्तु