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संजय स्तोत्र
स्वयं आचारण करनेवाले (तह) और (सया ) सदा भव्यजीवोंके अर्थ ( पयासन्त ) प्रकाश करनेवाले ऐसे (आयरिया) आचार्य (निहय) नाश किया है (कुतित्थं) बौद्धादिकुतीर्थ जिसने ऐसे ( तित्थं ) चतुर्विधसंघको ( पयासन्तु ) उद्यतकरो
. (भावार्थ) ज्ञान दर्शन चारित्र तप वीर्य ये पांच हैं प्रकार जिसके ऐसे आचारको स्वयं आचारण करनेवाले और सदा भव्य जीवोंकेअर्थ प्रकाश करनेवाले ऐसे तृतीय परमेष्टी आचार्य भगवान नाश किया है बौद्धादि कुतीर्थ जिसने ऐसे चतुर्विधसंघको उद्यतकरो
गाथा ) सम्मसुअवायगावायगाय सिअवायवायगावाए। पवयणपाडणीयकए वर्णन्तु सब्वस्ससंघस्स।! ५ ॥
__ (छाया) येसम्यक् श्रुतवाचकावाचकाश्च स्याद्वादवादकाः (चतुर्थ परमोष्टनः उपाध्यायाः) सर्वस्य संघस्य प्रवचनप्रत्य नीकान् अपनयन्तु