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________________ तंजय स्तोत्र || दुसरे (परमोणो ) परमेष्टीभगवान (सिद्धा) सिद्धसंज्ञक (तित्थरस) चतुर्विध संधके (दुत्थाणि) क्लेशोंको ( हणन्तु ) नाशकरो. ( भावार्थ ) जलदिये हैं अष्टज्ञानावरणदि कर्मरूप बीज जिन्होंने सद्गुणोंसेव्याप्त तीनो जगतमें विख्यात ऐसे दूसरे परमेष्टी भगवान सिद्ध संज्ञक चतुर्विधसंघ के क्लेशों को नाशकरो. ( गाथा ) आयारमायरंता पंचपयारं सया पया संता || आयरिया तह तित्थं निह कुतित्थं पयासन्तु ॥४॥ (छाया) ( ज्ञानदर्शनचारित्र तपोवीर्यादि) पञ्च प्रकारं आचारं (स्वयं) आचारन्तः तथा सदा ( अन्येभ्यः) प्रकाशयन्तः आचार्याः निहतकुतीर्थे ( एतादृशं ) तीर्थ प्रकाशयन्तु ( पदार्थ ) ( पंचपयारं) ज्ञान, दर्शन चारित्र, तप वीर्य ये पांच प्रकार जिसके ऐसे (आयारं ) आचारको (आयरंता) oܬ
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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