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तंजय स्तोत्र ॥
स्थापनकियेहुए चतुर्विध संधको ( मंगल ) कल्याण (दिन्तु ) देओ
( भावार्थ ) नाशकियेहैं सम्पूर्ण कर्मजन्य दुःख जिन्होंने नाशकी हैं खराब कृष्णादि लेश्या जिन्होंने और स्तुतिके योग्यहैं शुभ शुक्लादिलेश्या जिन्होंकी ऐसे वे प्रसिद्ध अर्हन्त भगवान श्रीवर्धमान तीर्थकर भगवानने स्थापनाकयेहुए चतुर्विधसंघको मंगल देओ
(गाथा) निद्दढकम्मबीआ,बीआपरमेष्ठिणो गुणसमिद्धा,॥ सिद्धा तिजयपसिद्धा हणन्तु दुत्थाणि तित्थस्स ॥३॥
(छाया) निर्दग्धकर्मबीजाः गुणसमृद्राः त्रिजगत्प्रसिद्धाः द्वितीयपरमेष्टिनः सिद्धाः तीर्थस्य दौस्थ्यानि नन्तु
(पदार्थ) (निद8 ) जलादियेहैं (कम्म) अष्टकर्मरूप ( बीआ) बीजजिन्होंने ( गुण ) सद्गुणोंसे ( समिद्धा ) व्याप्त (तिजय ) तीनोंजगतमें ( पासिद्ध) विख्यात (बीआ)