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तंजय स्तोत्र ॥
(भावार्थ) जो चतुर्वर्ण संघ इसजगतमें भव्य जीवोंके समूह को सुख पेदाकरनेवाला और चतुर्विध संघके स्वामी श्रीमहावीरस्वामीने धर्ममर्यादानुसार स्थापन किया हुआ वह संघ विजयको प्राप्त होओ
(गाथा) नासिय सयलकिलेसा निहयकुलेस्सा पसत्थ सुहलेस्सा सिखिद्धमाणतित्थस्स, मंगलं दिन्तुते अरिहा ॥२॥
(छाया) नाशित सकल क्लेशाः निहत कुलेश्याः प्रशस्त शुभ लेश्याः ते अर्हन्तः श्रीवर्धमानतीर्थस्य मंगलं ददतु
( पदार्थ )
(नासिय) नाशकियेहैं (सयल ) सम्पूर्ण (किलेसा) कर्मजन्यदुःखजिन्होंने (निहय ) नाशकी हैं ( कु) खराब ( लेस्सा ) कृष्णादिलेश्या जिन्होंने ( पसत्थ ) स्तुतिके योग्यहैं ( सुह लेस्सा ) शुक्लादिलेश्या जिन्होंकी ( ते ) वे प्रसिद्भ (अरिहा) अर्हन्त भगवान (सिरिवद्धमाणतित्थरस ) श्रीवर्धमानतीर्थकरभगवानने